February 23, 2013

विचार मुझ से कह रहा

 मैं  अकेला बैठ के,
विचार से था खेलता,

मैं अकेला बैठ के,
विचार से था खेलता ;

खेल - खेल में बने,
महल कई,
मकान कई ;

खेल - खेल में नपी,
जगह कई,
जहाँ कई ;

खेल - खेल में ही बस,
मुश्किलों  से लड़ गए,

खेल - खेल में ही बस,
मंजिलों पे चढ़ गए ;

खेल में प्रसंग था,
प्रेम का भी रंग था;

मोहबत्तों के तार थे,
इश्क भी हजार थे;

ऊँचे आसमान में, छलांग थी लगी हुई ;
बादलों के पार की, दुनिया जार - जार थी;

गुद - गुदाया कुछ मुझे,
मैं,
हंस पड़ा,

विचार मुझ से कह रहा,
मैं भी,
तुम्ही से खेलता;

विचार मुझ से कह रहा,
मैं भी,
तुम्ही से खेलता !!

धन्यवाद
हरीश