December 24, 2011

दिमाग के घोड़े

इक जरा सी बात हुयी,
और
दिमाग के घोड़े,
जाने कहाँ कहाँ दौड़े !

जो ना होना,
दस साल में,
उन घोड़ों पे हो के सवार,
पांच मिनट में हो जाता यार !

दिमाग के घोड़े.....
हैं इतने तैयार,
बिना बात की बात पे,
भागें तेज तर्रार,
रोके से भी न रुकें,
पल भर को,
कर लो तुम कुछ भी,
मेरे यार !

दोड़े दोड़े जाते पहुँच ये,
स्वप्निल महल मैं,
दोड़े दोड़े जाते पहुँच ये,
बादलों के उस पार !

रहम न करते,
चलते जाते,
दोड़े दोड़े !

इन घोड़ों पे हो के सवार,
लगाम लगाना है बेकार,
झूठे - सच्चे,
हर ताल को,
बिना किये विचार,
कर जाते बस ये पार,
ना थकते - न रुकते !

हर पल होती,
नयी बातों की नयी दौड़,
ना कमी इन्हें है,
रास्तों की,
ना कोई कमी है,
ताकतों की !
हर वक़्त रहते तने हुए,
और,
दौड़ने को तैयार,
बस इक जरा सी बात,
बता तो दो मेरे यार,
फिर देखो,
ये दिमाग के घोड़े,
बिना दिमाग के, कहाँ कहाँ दौड़े !!!

धन्यवाद
हरीश
22-12-2011

अन्दर है हँसता कोई

अन्दर है हँसता कोई,
कहता,
क्या है ये,
क्यूँ है ये,
किस लिए है ये सुब,
इतना उलझा - उलझा !

क्यूँ चाहता ये,
मन,
के हर उपवन,
बस हो जाए,
मेरा !

क्यूँ मनमानी करता ये,
क्यूँ अहम् से ही भरता ये,
क्यूँ कहे,
सभी कुछ मेरा,
क्यूँ लिए है,
जग - अँधेरा !!

पाने को जिन्हें तरसता था,
पा कर क्यूँ है ?
मुख फेरा !
इस जिंदगी मैं,
चंद साँसों की,
रहता करता तेरा - मेरा !

अन्दर है हस्त कोई,
कहता,
क्या था, क्या है, रहेगा क्या !!!


हरीश
14-12-2011

है मुझे भी न पता !!

क्या ढूंढता हूँ,

सच बताऊँ,
है मुझे भी न पता,

क्या सोचता हूँ,

सच बताऊँ,
है मुझे भी न पता,

इन गलियारों से,
विचारों के,
यूँ, तंग - तंग,
जाने क्या मांगता हूँ,

सच बताऊँ,
है मुझे भी न पता,

सब से मिला,
सब से सुनी,
बातें बड़ी - बड़ी,
उन बातों मैं बड़ी - बड़ी,
सत्य है क्या,

सच बताऊँ,
है उन्हें भी न पता,

लगते हैं अच्छे लोग वो,
जो जी रहे धन धान में,

अभिमान करते लोग वो,
जो जी रहे हैं मान में,

तरकश मैं जिनके तीर भौतिक,
छोड़ते हैं शान से,

इस धान मान शान के,
सच मैं हैं मालिक,

सच बताऊँ,
है उन्हें भी न पता,

आधी गयी इस जिंदगी में,
हूँ कहाँ पहुंचा,
अगर मैं सच बताऊँ,

है मुझे भी न पता !!
है मुझे भी न पता !!

अनजान सी इस ख़ोज में,
हैरान सी इस ख़ोज में,
परेशान सी इस खोज में,

कुछ मिलेगा,
या नहीं,

सच बताऊँ,
है मुझे भी न पता,

है मुझे भी न पता !!
है मुझे भी न पता !!


~  हरीश

December 23, 2011

बातें !!!


बातें, बातें, बातें,
बस बातें !

जीवन में तिमिर हो,
तब बातें

जीवन में शिविर हो,
तब बातें !

फूलों की अनगिनत पंखुड़ियों की,
धीमी धीमी महकती खुशबू की,
रंग की,
रूप की,
बनावट की,
बस बातें,  बस बातें !

समझने की,
समझाने की,
हँसते  – हँसते,
फिर गुमसुम,
हो जाने की,
बातें, बातें, बातें,
बस बातें !
उमंग  जगे, तरंग उठे,
फिर निकलें बातें,
हो बोझिल दिमाग तो,
कर लो फिर से बातें,
दिल मैं हो हलचल तो,
फिर कर लो बातें,
बातें बस बातें !

लोगों से
लोगों की 
बातें,
हों कहानियां.
हों रुमानियाँ,
उठे विचार,
या हो बीमार,
हो शौक,
या सम्पन्नता हो आधार,
हों कहीं भी,
बातें ही सहारा हैं,
बातें हैं,
बातों का संसार हमारा है !

गम गलत करें, 
ये बातें,
बांटें ख़ुशी भी,
ये बातें,
आदमी को हवा करें,
ये बातें,
हवा भरें आदमी मैं,
ये बातें !

बातों का जीवन है,
बातों का खेल,
बातों ही बातों मैं,
होते हैं मेल,
आनंद को पाना हो,
तो  बातें,
अंतर को जगाना हो,
तो बातें,
आदमी को पशु बनाना हो,
तो बातें,
पशु को भगवान् बनाना हो,
तो बातें !

क्या कहें भैया,
बातों का न कोई सार,
इस जग में जीने का,
बातें ही हैं,
बस आधार !!!!!


- हरीश