स्वप्निल नगर हो,
लम्बा सफ़र हो,
हो तुम,
और साथ तुम्हारा,
तो और क्या चाहिए !
औंस की बुँदे हों,
तारों-सी पाँव में,
रंग-बिरंगी तितलियाँ,
खेलती हों राहों में,
फूल हों खिले-खिले,
मस्त-जवां चाहो में,
और हो तुम,
साथ हो तुम्हारा,
तो और क्या चाहिए !
मंदिरों की घंटियाँ हों,
प्रेम हो तन-बदन में,
प्रेम हो विशाल-मन में,
साथ में हो तुम,
और हो साथ तुम्हारा,
तो और क्या चाहिए !
हरे - भरे से वृक्ष हों,
हरी भरी सी छाँव भी,
प्रेम का संगीत हो,
चाह की निगाह भी,
वृक्ष भी हो चुप खड़ा,
दिमाग हो अलग पड़ा,
प्रेम की ही बात हो,
प्रेम से ही रात हो,
साथ हो तुम,
और हो साथ तुम्हारा,
तो और क्या चाहिए !
बादलों का गाँव हो,
मोहबत्तों की छाँव हो,
श्रृंगार हो बहार हो,
मस्त सी फुहार हो,
मस्त इस फुहार में,
रंगीन इस बहार में,
आँखे बंद,
हम - तुम,
और हो साथ तुम्हारा,
तो और क्या चाहिए !
धन्यावाद
8-3-2012
ah haaaaaaaaa
ReplyDeletehamare priye kavi ji, aapki kavita hume phir usi swapnil nagar mein le gayi...
bahut bahut kamaaaal...
bahut dhanyawad aisi sunder man-mohini kavita ke liye :)
prem!