December 24, 2011

अन्दर है हँसता कोई

अन्दर है हँसता कोई,
कहता,
क्या है ये,
क्यूँ है ये,
किस लिए है ये सुब,
इतना उलझा - उलझा !

क्यूँ चाहता ये,
मन,
के हर उपवन,
बस हो जाए,
मेरा !

क्यूँ मनमानी करता ये,
क्यूँ अहम् से ही भरता ये,
क्यूँ कहे,
सभी कुछ मेरा,
क्यूँ लिए है,
जग - अँधेरा !!

पाने को जिन्हें तरसता था,
पा कर क्यूँ है ?
मुख फेरा !
इस जिंदगी मैं,
चंद साँसों की,
रहता करता तेरा - मेरा !

अन्दर है हस्त कोई,
कहता,
क्या था, क्या है, रहेगा क्या !!!


हरीश
14-12-2011

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