जीये जा रहे हैं,
रहगुजर में तेरी,
जीये जा रहे हैं,
की मिलेगा कहीं ?
देखतें हैं मौड़ पे,
जिंदगी के हर एक,
नहीं लगती भनक,
फिर भी कहीं तेरी !
तूं है भी सही ?
या परछाईयाँ है ,
तूं है भी कहीं ?
या तन्हाईयाँ हैं,
एहसास ही है बस,
या सच्चाईयां हैं ?
चंद दिनों की जिंदगी में,
उलझा मत !
चंद दिनों की जिंदगी में,
यूँ रुला मत !
मिल जा किसी मौड़ पे हँसते - हँसते,
चंद दिनों की जिंदगी में,
यूँ सता मत !
कैसे करें गुहार ?
कैसे करें पुकार ?
संत तो हम हैं नहीं,
ना बिलकुल गंवार !
पागलों ने पाया तुझे,
मस्त हो के,
मस्ती में,
बस रह गए हम,
सयानो की
बस्ती में,
हर खेल तेरा देखा,
हर मेल तेरा देखा,
दिखी तेरी झलक इनमे,
पर तुझको नहीं देखा !
कर दे काबिल तूं,
दे रहमती नजर वो,
देखे तुझे जो हर सु,
देखे तुझे जो हर सु !
कर दे काबिल तूं ,
की करें ऐलान ये,
के जी रहे है बस,
रहमतों में तेरी,
के जी रहे है बस,
नेमतों में तेरी !!
Good Night.
30th april 2011
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