गर छोड़ मुझे तू चली गयी
सोचता हूँ मैं आज ,
गर छोड़ मुझे तू चली गयी ,
तो क्या होगा मेरा !
सपनो के शांत समंदर में ,
होगी फिर से कुछ उथल पुथल ,
मन रोयेगा,
चिल्लायेगा ,
जीवन सूना हो जाएगा !
फिर तड़पेगी ये प्यासी रूह ,
फिर तड़पेगी ये प्यासी रूह ,
तुझ जैसा संगी साथी,
न और कहीं मिल पायेगा !
हद हो जायेगी अरमानो के टूटने की ,
जीवन के निर्मम हाथों से ,
फिर कौन मुझे बचाएगा !
गर छोड़ मुझे तू चली गयी ,
तो क्या होगा मेरा ,
मेरे चित को भटकाने का ,
मैं दूंगा दोष किसे तूँ बता ,
मेरे मन को उलझाने का ,
मैं दूंगा दोष किसे तूँ बता ,
इस शांत लहर में जीवन की ,
फिर से,
तूफ़ान आ जाएगा ,
गर छोड़ मुझे तू चली गयी ,
तो क्या होगा मेरा !!
हरीश
15 /06 /2008
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