March 11, 2018

आज दिखी एक ,
ढंगी बेढंगी जिंदगी ,

फुटपाथ पे गुजारी थी उसने ,
वो बेढंगी सी जिंदगी !
खुश लग रही थी मुख से ,
लेकिन उदास थी शरीर और मन से !

जीने की जददो जहद में ,
छोड़ दिया था जीना उसने !
क्या होती है ढंग की जिंदगी ?
हो सकते है
मायने जिंदगी के ,
कुछ न हो उसके लिए ,
पर मुझे बड़ी अजीब लगी ,
ये बेढंगी जिंदगी !

कट्टों  और तारपालों के ,
छोटे छोटे दो झोपड़ों में ,
रहती थी वो जिंदगी !

दिल्ली के फुटपाथ पे ,
पंचर लगाने वाले हरीश कुबड़े की ,
थी वो जिंदगी !

फिर दिखी आज,
एक बेढंगी जिंदगी !!


हरीश 
2/5/2007 

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