आज दिखी एक ,
ढंगी बेढंगी जिंदगी ,
फुटपाथ पे गुजारी थी उसने ,
वो बेढंगी सी जिंदगी !
खुश लग रही थी मुख से ,
लेकिन उदास थी शरीर और मन से !
जीने की जददो जहद में ,
छोड़ दिया था जीना उसने !
क्या होती है ढंग की जिंदगी ?
हो सकते है
मायने जिंदगी के ,
कुछ न हो उसके लिए ,
पर मुझे बड़ी अजीब लगी ,
ये बेढंगी जिंदगी !
कट्टों और तारपालों के ,
छोटे छोटे दो झोपड़ों में ,
रहती थी वो जिंदगी !
दिल्ली के फुटपाथ पे ,
पंचर लगाने वाले हरीश कुबड़े की ,
थी वो जिंदगी !
फिर दिखी आज,
एक बेढंगी जिंदगी !!
हरीश
2/5/2007
ढंगी बेढंगी जिंदगी ,
फुटपाथ पे गुजारी थी उसने ,
वो बेढंगी सी जिंदगी !
खुश लग रही थी मुख से ,
लेकिन उदास थी शरीर और मन से !
जीने की जददो जहद में ,
छोड़ दिया था जीना उसने !
क्या होती है ढंग की जिंदगी ?
हो सकते है
मायने जिंदगी के ,
कुछ न हो उसके लिए ,
पर मुझे बड़ी अजीब लगी ,
ये बेढंगी जिंदगी !
कट्टों और तारपालों के ,
छोटे छोटे दो झोपड़ों में ,
रहती थी वो जिंदगी !
दिल्ली के फुटपाथ पे ,
पंचर लगाने वाले हरीश कुबड़े की ,
थी वो जिंदगी !
फिर दिखी आज,
एक बेढंगी जिंदगी !!
हरीश
2/5/2007
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