March 10, 2018

तो जिन्दा हूँ 




बंधा हूँ ,
रिश्तों के बंधन में ,
तो जिन्दा हूँ  !

इच्छाओं के जंगल में घूमता हूँ ,
तो जिन्दा हूँ  !

भावनाओं से अपनी मैं खेलता हूँ ,
तो जिन्दा हूँ !

कोशिश है ,
जिंदगी को देखने की,
तो जिन्दा हूँ !

बंधा हूँ ,
गहरे अरमानो से ,
बंधा हूँ ,
मय  से  पयमानो  से,
बंधा हूँ,
सरोबार मयखानों  से ,
नशे में हूँ इतना ,
इसलिए 
तो जिन्दा हूँ !

दम भरता हूँ ,
अहंकार का ,
फिर 
कर लेता हूँ ,
सजदा सरक़ार  का ,

असंतुलन से बंधा हूँ ,
तो जिन्दा हूँ !

नासमझी के बिस्तर पे लेटा  हूँ ,
अँधेरे की गलियों में खोया हूँ ,
तकलीफ में हूँ ,
इसलिए
तो जिन्दा हूँ !


खुल गया होता ,
इच्छाओं , भावनाओं, अरमानों  से ,
छूट गया होता ,
मय  से, पैमानों से , मयखानों  से ,
समझा होता ,
तकलीफ को अगर ,
अँधेरा मिट गया होता ,
संतुलित हो गया होता !


तो न जाने कब का ,
मर गया होता !



हरीश 
11 /08 /2012 

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