March 11, 2018

वो मौसम , सर्द  हवाएं वो ,
और गर्मजोशी उसकी बाहों की ,
वाह 
क्या दिन थे ,
वक़्त रूकता नहीं था रोकने से भी !

टहलते - टहलते यूँ ही वक़्त गुजर जाता था ,

आज भी ,
छूकर  ये हवाएं , ठन्डे पानी को जब ,
सहलाती हैं बालों को मेरे ,
याद उसकी ताजा हो आती है ,
जहन में मेरे !
उसकी मखमली उंगलियां 
और 
मेरा रोम रोम !!



ये वक़्त बदलता है ,
बदलता है मौसम भी साथ साथ ,
रुत मदमस्त हो जाने पर ,
आती है उनकी याद दिन रात ,

करो बंद आँखें तो ,
दिखता है चेहरा मस्त मोहबत्त का ,
खुली हो आँखें गर ,
हर चेहरे में मोहबत्त दिखती है !

ये मौसम का असर है या 
बदल गया है दिल भी 
मौसम 
के साथ साथ !!




हरीश 

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