March 11, 2018

जीवन कितना है निष्ठुर , है मधुर भी कितना जीवन

जीवन कितना है निष्ठुर ,
है मधुर भी कितना जीवन ,









जीवन कितना है निष्ठुर ,
है मधुर भी कितना जीवन ,
क्षण में मिलाये ,
किसी प्रियतम से ,
फिर आस जगे कुछ जीने की ,
फिर प्यास जगे ,
उस से मिलने की ,
तन भटक जाए ,
मन भटक जाए ,
उसके सिवा  कुछ याद न आये ,
फिर आग लगे तन और मन में ,
भटके जीवन बस तड़पन में ,

जीवन कितना है निष्ठुर ,

है मधुर भी कितना जीवन !


हरीश 
6/8/2007 

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