March 11, 2018

Kahaani

मन की विचित्रता , धुंधुलापन ,
उम्र के बढ़ने के साथ  ,
सुलझाने की बजाये उलझता ही जा रहा है !

इच्छ्हायें ख़तम होने का नाम नहीं लेतीं ,
लम्बे जीवन की लम्बी अवधि के साथ ,
इच्छाएं , आकांक्षाएं , लम्बी होती जा रही हैं !

समय करवट बदलकर कुछ अच्छा करता है ,
और वही समय , उस अच्छे में ,
चार बुराई छुपा देता है ,
जो फिर जीवन को उलझा देती हैं !

इन सब चककरों  से बचने का उपाय ,
शायद मृत्यु हो ,
पर अगर मरना ही है ,
तो ,
इस जीवन में आए क्यों ?

अपने जीवन  लगभग आधे पड़ाव को पार करने के बाद ,
सब कुछ धुंधला है ,
जीवन के अंत तक ,
ये धुंधला ही रहेगा , शायद !

कुछ दो चार अच्छे या बुरे काम कर भी लेते हैं ,
तो भी जीवन का क्या महत्त्व ,
बातें , बातें , बातें ,
बातों की अदला बदली ,
बातों की हेरा फेरी ,
यही सब जीवन है शायद !


हरीश 
30 /5/2007 



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